Part-9
प्रश्न 1 - निदानात्मक शिक्षण क्या है ?
उत्तर 1 - निदानात्मक शिक्षण ➢ निदानात्मक शिक्षण के अन्तर्गत किसी विषय के शिक्षण में आने वाली समस्याओं को पता करके उनको दूर करने का प्रयास किया जाता है ।
➧ निदानात्मक शिक्षण के उद्देश्य निम्नलिखित है ।
1 - किसी विषय वस्तु में अध्ययन और अध्यापन की दृस्टि सुधार करना।
2 - शिक्षण के सभी प्रकार की समस्याओं को ढूंढ़ना और उनका उपचार करना ।
3 - छात्र और छात्राओं की विषय के सम्बन्ध में विशिस्टताओं एवं कमजोरियों का पता लगाना ।
4 - विषय वस्तु को "बाल-केंद्रित " बनाना ।
5 - मूल्यांकन पद्धति को और भी अधिक प्रभावशाली बनाना तथा उसमे समय - समय पर परिवर्तन करना ।
➧ निदानात्मक शिक्षण के 5 चरण इस प्रकार है ।
1 - सर्वप्रथम समस्याग्रस्त विद्यार्थियों की पहचान करना ।
2 - तत्पश्चात उस क्षेत्र विशेष को देखना जहां बालक द्वारा त्रुटि हो रही है।
3 - फिर उस समस्या को समझना चाहिए ।
4 - उसके बाद उस समस्या अथवा जटिलता को दूर करने के लिए शिक्षक को विचार करना चाहिए ।
5 - अंततः इन सभी चार चरणों की प्रक्रिया के पश्चात पांचवें चरण में समस्या का उपचार करना चाहिए ।
➧ उपचारत्मक शिक्षण - उपचारत्मक शिक्षण विधि की निम्नलिखित विशेषताए है ।
1 - उपचारात्मक शिक्षण विधि मनोवैज्ञानिक नहीं है।
2 - इस विधि का प्रयोग - कमजोर तथा पिछड़े छात्रों के निदानात्मक मूल्यांकन के पश्चात उनकी कमजोरियों अथवा कमियों में सुधार के लिए प्रयोग किया जाता है ।
3 - निदानात्मक शिक्षण और उपचरात्मक शिक्षण आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए है , अर्थात एक के बिना दूसरा अधूरा है ।
4 - इस विधि में (उपचारात्मक शिक्षण ) में छात्र और छात्राओं को यह प्रेरणा दी जाती है , कि वे अपनी संपूर्ण क्षमताओं के अनुसार अधिक और अच्छा कार्य करें ।
➧ शिक्षण हेतु " उपचारत्मक शिक्षण " के सिद्धांत निम्नलिखित है I
1 - अध्यापक एवं विद्यार्थी के बीच निकट सम्बन्ध स्थापित हो ।
2 - एक शिक्षक को " उपचारात्मक शिक्षण " की सम्पूर्ण योजना तथा भूमिका स्पस्ट रूप से पहले ही बना लेना चाहिए ।
3 - उसके बाद उस योजना का कार्यान्वयन करना चाहिए ।
4 - उपचारात्मक शिक्षण की प्रक्रिया के दौरान बालको की आयु , रूचि , योग्यता , अनुभवों आदि को ध्यान में रखा जाना चाहिए , तत्पश्चात उपचारत्मक शिक्षण की प्रक्रिया को करना चाहिए ।
5 - बालको की विषय के प्रति रूचि बनी रहे उसके लिए उन्हें पर्याप्त प्रोत्साहन देना चाहिए ।
➧ पिछड़े बालको के लिए उपचारत्मक शिक्षण के नियम निम्नलिखित है ।
1 - सर्वप्रथम कमजोर बालको को एक ही कक्षा में रखा जाना चाहिए ।
2 - पिछड़े बालको की कक्षा में विधार्धियो की संख्या 20 - 25 से अधिक नहीं होनी चाहिए ।
3 - किसी भी विषय - वस्तु के उस क्षेत्र को देखना चाहिए , जिसमे बालक अधिक गलती करते है ।
4 - शिक्षक को शिक्षण के दौरान मॉडल तथा चार्ट का प्रयोग करना चाहिए।
5 - शिक्षक को छात्र तथा छात्राओं की आवश्यकता अनुसार कक्षा एवं कक्षा के बाहर व्यक्तिगत परामर्श अवश्य देना चाहिए ।
6 - शिक्षक को चाहिए कि वह छात्रों की गलतियों का सुधार उनके समक्ष / सामने ही करें । जिससे की वह बालक गलती को पुनः नहीं दोहराये ।
➧ प्रतिभाशाली बालको के लिए उपचारत्मक शिक्षण के नियम निम्नलिखित है।
1 - प्रतिभाशाली बालको को उपचारत्मक शिक्षण विशेष रूप से देना चाहिए
2 - प्रतिभाशाली बालको को सही और उचित मार्गदर्शन न मिलने से सामाजिक दृस्टि से गलत रास्तों पर जाने अथवा बाल अपराधी की सम्भवना अधिक बढ़ जाती है ।
3 - प्रतिभाशाली बालको को आधुनिक विज्ञान , गणित , इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी आदि सम्बंधित सभी विषयो का संपूर्ण ज्ञान व्यवस्थित ढंग से देना चाहिए ।
4 - प्रतिभाशाली बालको के शिक्षण में निम्नलिखित विधियो का प्रयोग करना चाहिए - जैसे कि - निगमन विधि, संश्लेषण विधि ,प्रयोगशाला विधि , ह्यूरिस्टिक एवं प्रोजेक्ट विधि आदि ।
5 - प्रतिभाशाली बालको के समक्ष कुछ समस्याओ और चुनोतियो को प्रस्तुत करना चाहिए ।
बालक के विकास के "सांस्कृतिक कारकों " का योगदान
(i ) बालक के "सांस्कृतिक - कारको " में बालक से सम्बंधित निम्नलिखित विशेषताओं को शामिल किया जाता है।
→ बालक के खाने - पीने और रहने -सहने का ढंग कैसा है ? इसका सपूर्ण प्रभाव उसके " विकास " पर पड़ता है। अर्थात बालक का खान -पान रहन - सहन उसके उसके सांस्कृतिक कारको पर निर्भर करता है।
→ बालक का धार्मिक ढंग - अर्थात बालक धार्मिक है अथवा नहीं ?- किसी समारोह को मनाने का ढंग कैसा है।इस प्रकार इन सभी कारको का संपूर्ण प्रभाव बालक के विकास - विकास पर पड़ता है।
बालक के विकास में वातावरण सम्बन्धी कारक
(i ) वातावरण वह " बाह्य तत्व " है। जो किसी मानव को प्रभावित करता है। अर्थात कोई भी मानव अपने वातावरण से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है।
(ii ) किसी बालक को बहुत से कारक प्रभावित करते है। जिसमे उस बालक का अनुवांशिक कारक भी एक प्रमुख कारक होता है। साथ ही अनुवांशिक कारक के बाद जो किसी बालक को सर्वाधिक प्रभावित करने वाला कारक होता है , वह उस बालक का "वातावरण " सम्बन्धी कारक होता है। "
(iii ) किसी मनुष्य के जन्म से मृत्यु तक वे सभी बाह्य कारक अथवा बाह्य परिस्थतियाँ जो की उसे प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से प्रभावित करती है - पर्यावरण के अंतरगर्त आती है। "
(iv ) हमारे चारो ओर का वातावरण जिसमे कि - धरती , आसमान ,जल , थल ,पहाड़ , नदियाँ , जीव - जन्तु आदि सभी आते है , वातावरण या पर्यावरण कहलाते है।
(i ) रच के अनुसार - " पर्यावरण में वे सभी परिस्थितियाँ आती है ,जो कि बालक के व्यवहार हो उद्दीपित करती है। अथवा व्यवहार में परिमार्जन को जन्म देती है।
(ii ) रॉस के अनुसार - " पर्यावरण कोई बाहरी व्यक्ति है , जो कि हमे प्रभावित करता है।
(iii ) वुडवर्थ के अनुसार - " वातावरण में वे सभी बाह्य तत्व आते है , जिन्होंने जीवन प्रारम्भ करने के काल से मानव को प्रभावित किया है। "
(iv ) जिसबर्ट के अनुसार - " जो भी किसी वस्तु अथवा किसी तत्व को चारो ओर से घेरे हुए है। एवं उस पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालता है , पर्यावरण कहलाता है। "
(v ) बोरिंग लैगफील्ड और वेल्ड के अनुसार - " किसी व्यक्ति का वातावरण उन सभी उत्तेजनाओं का योग है , जिन्हे वह जन्म से लेकर मृत्यु तक ग्रहण करता रहता है। "
(vi) टी - डी -इलियट के अनुसार - " चेतन पदार्थ में किसी इकाई द्वारा प्रभाव रखने वाले उद्दीपन एवं उसके अंतः क्रिया के क्षेत्र को वातावरण कहते है। "