(ii) वाणी " मनोक्रियात्मक कौशल " है । अर्थात मानसिक रूप से किया जाने वाला कौशल І
(iii) बिना अर्थ और नियंत्रण के बोली गयी वाणी "तोता वाणी " कहलाती है ।
(iv) वाणी केवल " मनुष्यों " द्वारा ही बोली जाती है ।
(v) वाणी वह होती है ,जिससे कोई व्यक्ति अथवा समाज समझ सके І
(vi) वाणी अर्थपूर्ण (जिसका अर्थ हो ) ही होती है , अर्थात बिना अर्थ के कोई भी वाणी नहीं हो सकती ।
कोई भी व्यक्ति किसी भी समाज में जब वह अपने विचारो का आदान - प्रदान करता है , तो वाणी के माध्यम से ही करता है І
(5) संवेगात्मक तनाव ➨ जिन बच्चो सवेगों का कठोरता से दमन किया जाता है , जैसे की - डाटना ,पीटना ,झिड़कना ,आदि - ऐसे बच्चो में भाषा का विकास क्रम देर से प्रारम्भ होता है ∣
(8)
भाषा दोष के बालको पर प्रभाव ➨ जिन भी बालको में भाषा दोष उत्पन्न हो जाते है ,वे समाज से कतराने लगते है , उनके अंदर हीनता ,अकेले रहना , कम बोलना ,आदि प्रवत्ति पायी जाती है Ι इन बालको को " पिछड़ा बालक " कहते है Ι
(9) चिंतन ➨ चिंतन एक ज्ञान प्राप्त करने की "मानसिक प्रक्रिया " है । इसके अतरगर्त - स्मृति ,कल्पना ,अनुमान आदि को शामिल किया जाता है І
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(10) वंशानुक्रम एवं वातावरण - वंशानुक्रम का मूल " कोष " होता है। इस कोषों के द्वारा ही मनुष्य के शरीर का बनता है। कियोकि इन कोषों के केंद्र में "गुणसूत्र "पाए जाते है। इन गुणसूत्रों में मनुष्य के "अनुवांशिकता " के जीन्स होते है। जो कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाते है। और यह क्रम चलता रहता है। ये संपूर्ण प्रक्रिया " वंशानुक्रम " कहलाती है।
(11 ) शारीरिक दृस्टि से वंशानुक्रम - किसी भी बालक में वंशानुक्रम के तहत " शारीरिक विकास " को देखने से विभिन्न तरह तथ्यों का ज्ञान होता है।
जैसे कि -
(i ) बालक की ऊंचाई (hight ) क्या होगी ?
(ii ) बालक का रंग - रूप कैसा होगा ? जैसा कि अक्सर हम देखते है कि - जिन माता - पिता का रंग साफ़ (गोरा ) होता है , उन माता - पिता की संतान का भी रंग गोरा होता है। वही इसके विपरीत - जिन माता - पिता का रंग काला होता है , उन माता - पिता की संतानो का रंग भी अक्सर "काला " देखने को मिलता है।
(iii ) बालक में शारीरिक वृद्धि किस प्रकार की होगी।
(iv ) बालक का विकास किस प्रकार और कैसे निर्धारित होगा।
अतः इस प्रकार हम कह सकते है , कि किसी भी बालक का वंशानुक्रम "शारीरिक दृस्टि " उसके विकास एवं वृद्धि को प्रभावित करता है। वही दूसरी और इन सम्बन्ध में कुछ अपवाद भी देखने को मिलते है।
(12 ) बौद्धिक दृस्टि से वंशानुक्रम - किसी भी बालक में वंशानुक्रम के तहत " बौद्धिक दृस्टि " को देखने से विभिन्न तरह तथ्यों का ज्ञान होता है।
(i ) गोडार्ड के अनुसार - " मंद बुद्धि के माता - पिता के संतानो (बच्चो ) की बुद्धि मंद होती है और तीव्र बुद्धि के माता - पिता के बच्चो की बुद्धि भी " तीव्र " ही होती है। "
→ हालांकि - इस पर बहुत से मनोवैज्ञानिकों के "विरोधावास " है। साथ की ऐसे तथ्य निकलर सामने आये है , जिसमे इस नियम को गलत पाया गया है।
(ii ) बुद्धि को हम अधिगम अर्थात "सीखने की योग्यता" कहते हैं। जिसमे बालक के विभिन्न क्षेत्रों को देखा जाता है।
जैसे कि
(i ) बालक द्वारा निर्णय लेने की क्षमता कैसी है ? क्या वो त्वरित निर्णय लेने में सक्षम है या नहीं।
(ii ) बालक के सीखने की गति कैसी है ? अर्थात बालक के सीखने की गति - "तीव्र " है - अथवा "मंद " है। कियोकि यदि बालक के सीखने की गति "तीव्र " होगी तो उस बालक का " मानसिक - विकास " भी तीव्र गति से होगा। ठीक इसके विपरीत यदि बालक के सीखने की गति यदि - " मंद " है , तो उस बालक का मानसिक विकास भी "धीमी " गति से होगा।
(iii ) " मनोविज्ञानिकों " ने - वंशानुक्रम से संबंधित विभिन्न तरह की परिभाएँ दी है। जिनमे से कुछ इस प्रकार है।
(i ) बी-एन -झा - के अनुसार - " वंशानुक्रम व्यक्ति की जन्मजात विशेषताओ का पूर्ण योग है। "
(ii ) वुडवर्थ के अनुसार - " वंशानुक्रम में उन सभी बातो को शामिल किया जाता है - जो कि बालक - में उसके जन्म के समय नहीं अपितु गर्भाधान के समय - 9 माह पूर्व मौजूद थी। "
(iii ) एच् - ए - पेटरसन -के अनुसार - " बालक माता - पिता के माध्यम से अपने पूर्वजो की जिन विशेषताओं को प्राप्त करता है उसे - वंशानुक्रम - कहते है। "
(iv ) जेम्स ड्रेवर के अनुसार - " शारीरिक तथा मानसिक विशेषताओं का माता - पिता से संतानो में हस्तांतरण होना ही वंशानुक्रम हैं। "
(v ) रूथ - बेनेडिक्ट के अनुसार - " वंशानुक्रम माता - पिता से बच्चो को प्राप्त होने वाला एक गुण है। "